शायर नहीं हूँ मैं न हूँ कोई कवि ,
दर्द सीने में इतना भरा हैं ,
कुछ तो बयाँ करना है।
कब तक रहूँगी हर बात पर रोती ,
मेरी इसी बात से तो सब ख़फा है।
आज अपना दिल खोलकर रखना चाहतीं हूँ ,
बहुत सह लिया अब और न सहना चाहतीं हूँ।
क्या करूँ मैं दोस्तों??
बचपन में इतना रुलाया लोगो ने,
बचपन ही खो दिया मैंने।
आज मुसीबतों का सामना कैसे करूँ
इस बात से मैं अनजान हूँ।
कभी चाहत होती है मरने की ,
कभी जीने को जी चाहता है ।
किसी और के लिए नहीं
सिर्फ!सिर्फ!उस खुदा के लिए।
वो खुदा तो सबका है,
पर मेरा खुदा(माता,पिता) सिर्फ मेरा है।
जिसने मुझे जन्म दिया,
जिसे मुझ पर गर्व है।
सिर्फ उस खुदा के लिए,
जीने को जी चाहता है।
शायर नहीं हूँ मैं न हूँ कोई कवि ,
दर्द था सीने में बहुत,
आज बयाँ कर रहीं हूँ यही।